काहेको हरदम बाचत पोथी ?
(तर्ज : हर भज हर भज हिरा परखले... )
काहेको हरदम बाचत पोथी ? क्या सीखा पोथीमाँही ?
काम-क्रोधमें फँसा दिवाने ! तन-उमरी सारी खोई ।।टेक।।
चंचल मन तो निसदिन भटके, स्थीर जरा कीन्हा नाही ।
कर्मकांडमें उमर गुजारी, पत्थर हो बैठा ताही ।।१।।
नहीं किसे प्रेमसे पुकारा, लोभ किया खुब मनमाँही ।
विषय-वासना खूब बढायी, घुमता है जंगल दाही ।।२।।
तुकड्यादास कहे बिन संगत, मूरख को अक्लहि नायी ।
बिन गुरु-किरपा तरे न भवमें, बोलत सन्त सदा योंही ।।३।।