आखरी का तूही है, विश्वास करने को प्रभू ! ।

(तर्ज: क्यों नहीं देते हो दर्शन...)

आखरी का तूही है, विश्वास करने को प्रभू ! ।
झूठ है  संसार यह, आया है मरनेको   प्रभू  ।।टेक ।।
आज बचपन, कल जवानी,फिर बुढापा आगया।
बस चले बासों बिछाकर, सहल करनेको प्रभू ।।1।।
ज्वानि में पत्नी पुकारे, धन के खातिर पुत्र है।
सत्ता के मारे साथी है, मुख नाम धरनेको प्रभू ।।2॥
वीर्य खोते स्त्री है दुश्मन, धन गया फिर पुत्र शत्रू।
साहबी जाने लगी, फिर कौन रोनेको प्रभू  ।।3।।
यह तमाशा _ जिंदगीका, शायदहि सब देखते।
फिर भी न होता ज्ञान ना, तुमको सुमरने को प्रभू ।।4।।
किसके चरणोंमें बसे हम, जिससे धोखा हो नहीं ।
कहता तुकड्या तूहि है, इस दिलमें धरनेको प्रभु ।।5।।