क्या तुझको समझाऊँ अरे मन ! क्या
(तर्ज : अपने आतम के चिन्तन में. . . )
क्या तुझको समझाऊँ अरे मन ! क्या तुझको समझाऊँ बे ? ।।टेक।।
स्थीर जरा नहीं रहत कभूभी ,क्या तुझको दिलवाऊँ बे ? ।
न मरे जहर-लहर भी दीन्ही, और और बढवाऊँ बे ।।१।।
कौन दवासे बैठ रहेगा ? कौन बैद बुलवाऊँ बे ? ।
बैदकी भस्म पिलाऊँ तुझको ? नहीं माने पल काहूँ बे ।।२।।
दिन रैना चंचलपन माँही, कबही सुख ना ताहूँ बे ! ।
मारेसे मरभी नहिं जावे, कैसा शस्त्र लगाऊँ बे ? ।।३।।
बिगराया इस तनको मेरे, तेरो नाम बदाऊँ बे! ।
कहता तुकड्या मान जरा अब, नहींतो फिर पछताऊँ बे!।।४।।