वही घटकी बलिहारी साधो !

(तर्ज : अपने आतम के चिन्तन में . ... )
वही घटकी बलिहारी साधो ! वहीं घटकी बलिहारी रे !।।टेक।।
मुरदेपनमें दुनिया देखे, नहीं देखे नर - नारी रे ! ।
अंधेपनमें काम चलावे, काम - सकामा   हारी   रे ! ।।१।।
ग्यान-अग्यान कछू नहीं जानत,नहीं कुछ सुरत उबारी रे ! ।
जहाँके तहाँ रुप दर्शावे,   रूपअरूपा    हारी    रे ! ।।२।।
नहीं  संसारी कर्म-अकर्मी, कर्तेपन छब न्यारी रे !
नही परमारथ नहीं कछु स्वारथ, संग असंगत टारी रे ! ।।३।।
जगना-सोना रात-दिवस और, नहीं उजार-अंधारी रे ! ।
तुकड्यादास तिहोंकु शरण है, जो घट पार निवारी रे ! ।।४।।