उसिको बोध बखानो साधो !

(तर्ज : अपने आतम के चिन्तन में... )
उसिको बोध बखानो साधो ! उसिको बोध बखानो जी ! ।।टेक।। 
जिसपर बीत रही सब बोधा, जानपना जिह छानो जी ! ।
जानतही बुद्धी पलटावे, वहीं   बचन  ठहरानो    जी ! ।।१।।
नहीं आशा कछु काम करनकी ,नहीं जानत अभिमानो जी ! ।
लीन सदा सतसंगत  चाखे, आतम प्रेम निशानो  जी ! ।।२।।
नहीं मनशा कामादिक कुछभी, कर्म समझकर मानों जी! ।
घोकत जागत स्वप्न सुषूपत,सुन्न बिचार   समानो   जी ! ।।३।।
भक्ती -प्रेम बोधसे चाखे, नहिं पंडित दरसानो जी! ।
तुकड्यादास खासकर बोले, यहि लच्छन पहिचानो जी !।।४।।