वहि मुरशदके प्यारे साधो !
(तर्ज: अपने आतम के चिन्तन में... )
वहि मुरशदके प्यारे साधो ! वहि मुरशदके प्यारे हैं ।।टेक।।
नंग-निसंग रहत दुनियामें, योग- बियोगन हारे है ।
आसन-मुद्रा कुछ नहिं जानत, आपही आप उजारे हैं ।।१।।
नहीं कुछ भेख अंगपर लीन्हा, नहीं तापी-जपवारे हैं ।
नहीं कुछ माल जटा बढवाई, नहीं साधन -सिद्धवारे हैं ।।२।।
नहीं धूना कुछ साथ तुरंगा, नहीं बाँधे बँधवारे हैं ।
सब कुछ करत करे नहीं कुछभी, कर्मनसे नहीं न्यारे हैं ।।३।।
करे न करे सब कारज जगके, काज-अकाज सँवारे हैं ।
तुकड्यादास लखे नहीं जावे, माँगत भीख भिखारे हैं ।।४।।