जागे हो मत सोना भाई !

(तर्ज : अपने आतम के चिन्तन में .. . )
जागे हो मत सोना भाई ! जागे हो मत सोना जी ! ।।टेक।।
जगनेसे प्रल्हाद बचा है, नींद लियेपर रोना जी! ।
धृव अधरपद लेकर बैठा, जागा रहत नगीना जी ! ।।१।।
जगना एक दुनियासे न्यारा, बिन जगनेको भोना जी ! ।
नींद भरी है काल-सँगाती, जागेपन में सोना   जी ! ।।२॥
जागा वह सद्गुरुका प्यारा, रहत निसंग न मौना जी ! ।
भक्त अजामिल आखिर जागा, जन्म -मरनको खोना जी ! ।।३।।
तुकड्या बालक दो कर जोडे, बोले बात सुनोना जी ! ।
जगनेसे सब संत उधारे, जगना मैलसु धोना   जी ! ।।४।।