वहींके घर है जाना हमको
(तर्ज : अपने आतम के चिन्तन में... )
वहींके घर है जाना हमको, वहींके घर है जाना जी ! ।।टेक।।
जहाँपर उलट नगरका बासा, ख्याल चढे अस्माना जी ।
मौज रहे एक संगम झूला, सोहँ शब्द सुहाना जी ! ।।१।।
जीवनधारा झुरझुर बहती, अमृत झिलमिल छाना जी ! ।
चाँद-सुरज बिन गिरे उजारा, कोट भानु मनमाना जी ! ।।२।।
रैनदिना जागा, नहीं सोया, ऐसी जगह अजमाना जी! ।
सुरत चढ़ी आतममें जैसी, उन्मन तार लगाना जी ! ।।३।।
आपही आप मौजको देखे, नहीं दूजा मन माना जी ! ।
आगसे पीछे बनपाये, नहीं आना अरु जाना जी ! ।।४।।
तुकड्यादास यही धन माँगे, और सभी है तुफाना जी ! ।
बिन सद्गुरुके सद्गुरुके बिरला पहूँचे, ऐसो देश मकाना जी ! ।।५।।
(--- प्रयाग राज)