जतन करो है ताकी प्यारे !

(तर्ज : अपने आतम के चिन्तन में... )
जतन करो है ताकी प्यारे ! जतन करो हैं ताकी रे ! ।
जो न करे न कहे कुछ बाकी, सो वस्तू है साखी रे ! ।।टेक।।
जहाँपर लीन भये तीन-चारों, पाँचोंकी गत फीकी रे ! ।
पाँच-पचीस परे सब  हारे, यहूं छत्तीसा   हूकी   रे ! ।।१।।
जो न बना, न बने बननेसे, करना -हरना झाँकी रे ! ।
जो न हटे न कटे कटवाये, यह झूठी सब हाँकी  रे ! ।।२।।
भासत भान, नहीं भासनका ,भान-अभान यह ठाकी रे ! ।
ज्यों मिल नमक बने सागरवा, दूहपना नहीं जाकी   रे !। ।३।।
जहँके तहाँ बसत पलपलमों, निरहंकारउ थाकी रे ! ।
तुकड्यादास कहे वही चाखो, जहाँ नही मैं-तू धाकी रे ! ।।४।।