अंतर - तार लगाना संतो !
(तर्ज : अपने आतम के चिन्तन में. .. )
अंतर - तार लगाना संतो ! अंतर - तार लगाना जी ! ।।टेक।।
जहाँपर बाजत ताल मृदंगा, अरगन बाद सुहाना जी ! ।
जहाँपर नाद बजे दस बहुधा, मगन हुआ मन माना जी ! ।।१।।
त्रिकुट शिखर एक सुंदर ज्योती, जहाँपे पद निरबाना जी !।
ऊर्ध्व नयन नयनों से न्यारा, वह नैननका नैना जी ! ।।२।। जगमग ज्योत जले दिनराती, जहाँपर दिन ना रैना जी ! ।
ब्रह्मकमल एकदंड शिखरमें, डोलत भ्रमर निशाना जी ! ।।३।। टपकत अमृत-धार पियारी, पीय अमर हो जाना जी ! ।
बाहरकी सब भूल पड़े तब, लागे अंतर - ध्याना जी ! ।।४।।
तुकड्यादास कहे अजमालो, जो योगनका ठाना जी ! ।
पूरेसे पूरा लग पावे, पूरा वह गुण गाना जी ! ।।५।।