अजब तमाशा तेरा भाई !

(तर्ज : अपने आतम के चिन्तन में... )
अजब तमाशा तेरा भाई ! अजब तमाशा तेरा रे।
तू दुनियामें दुनिया तुझमें, उलट-पलटका फेरा रे ! ।।टेक।।
तुमही भूत-अभूत जगतके, तुमहीने जग घेरा रे ! ।
अंड-खंड ब्रह्मांड-पिंड सब, जीवन जीव अनेरा रे ! ।।१।।
प्रकृती -पुरुष अनादि -आदी, तुमही माया-छेरा रे ! ।
तुमही कीन्हा तुमही छीना, तुममें जाय समेरा   रे ! ।।२।।
तुमही काम -क्रोध मद-मत्सर, तुमही ज्वाल-अंधेरा रे ! ।
तुमही देव-भगत बन लीन्हो, तुमही गुरुजी-चेरा रे ! ।।३।।
कर्ता-हर्ता तुमही  कीन्हा, तुमसे कौन दुजेरा रे ? ।
तुकड्याबाल कहे सब छूटा, यह कहना जो मेरा रे ।।४।।