सुनते हो तो सुनलो भाई !

(तर्ज : अपने आतम के चिन्तन में... )
सुनते हो तो सुनलो भाई ! हमको एक दिन जाना है ।
नहीं बाँधे कुछ जन्ममरणसे, सत्‌की भीख  मँगाना है ।।टेक।।
कोई दिन खाना ताजा हलुवा, कोई दिन रोट चबाना है ।
कोई दिन लड्डू रूखा सूखा, कोई दिन खाली गाना  हैं ।।१।।
कोई दिन बाग -बगीचो माठो, कोई दिन महल उडाना है ।
कोई दिन लेटे छाँव-अंधारे, कोई दिन धूल बिछाना है ।।२।।
कोई दिन शाल-दुशाले ओढे, कोई दिन काला बाना है ।
कोई दिन गांड लंगोटी पहरे, कोई दिन नंगा न्हाना  है ।।३।।
खबर करो तुम अपनी बाबा ! रामघर एक दिन जाना है ।
तुकड्यादास कहे जागे हो, जमका   फेर   हटाना   है ।।४।।