उसिने ईश्वर देखा भाई !

(तर्ज : अपने आतम के चिन्तन में... )
उसिने ईश्वर देखा भाई ! उसिने ईश्वर देखा जी ! ।
ईश्वरभावही जिसका छूटा, मारी करमपे रेखा जी ! ।।टेक।।
शुन्यसमान बिचार-अचारा, नहीं कुछ एक-अनेका जी ! ।
तेजमें तेज मिलाय दियाजी, नीरमें नीरस   भेखा   जी ! ।।१।।
नर और नार जगत और भेदा, मैं तू भेद सरीखा जी ! ।
अविगत अलख लखे नहीं ऐसो, बैठे थीर  परेखा   जी ! ।।२।।
गुणमें त्रैगुण भूलगये जो, निरबाना अनलेखा जी! ।
कर्म - अकर्म शुभाशुभ सारे, छूटे पाप  -  पुनेखा   जी ! ।।३।।
ग्यान-अग्यान सरुप-अरुपा, सब टूटे जहाँ टेका जी ! ।
तुकड्यादास कहे वही ईश्वर, नहीं तो माया -भेखा जी ! ।।४।।
                                   (---- प्रयागराज)