सब मतलबके साथी प्यारे !
(तर्ज : अपने आतम के चिन्तन मे
सब मतलबके साथी प्यारे ! कौन किसीके नाती हैं !
मात-पिता-तिरिया-सुत-साले, सब दौलतके साथी हैं ।।टेक।।
जबलग फूल रहे तरुवरपे, तबलग चिडियाँ खाती हैं।
फूलहीन जब तरूवर होवे, तब सबही उडजाती हैं ।।१।।
जलका सरवर सूखगया तो, हंसा नहिं ठहराती हैं।
मृगजल देखत प्रेमसे हिरनी, दूरनसे भर आती हैं ।।२।।
पनिहारीन कुएँपे लटके, जबलग नीर दिखाती है।
बिन पानीका कुआँ देखते, कोउ नहीं ढुकवाती है ।।३।।
तुझपर स्वार नहीं जमराजा, तबलग ये संगाती है ।
मौत भयी जब कोउ न आवे, अपने घर भगजाती है ।।४।।
तुकड्यादास कहे इनहीस, मुक्ति दूर भगाती हैं ।
आजहिसे नश्वर संग छोडो, रामही राम संगाती है ।।५।।