तुमहीसे मन माना स्वामी !

(तर्ज : अपने आतम के चिन्तन में... )
तुमहीसे मन माना स्वामी ! तुमहीसे मन माना जी ! ।।टेक।।
और नहीं कोउ तारक मेरो, सब स्वारथ-अजमाना जी ! ।
आदि अनादि तुमही तो हो मोहे, बंधनसे छुडवाना जी ।।१।।
जब हम गर्भ - गुफामें दौडे, आकर फाँस छुडाना जी ।
बालकपनमों कछ नहीं जाने, दीन्हो ग्यान खजाना जी ।।२।।
तुमही तो भ्रमजाल लगाये, अब इनसे छुडवाना जी ।
तारूणपन मद काम भुलावे, आशा दिल असवाना जी ।।३।।
दयानिधान! दया कर मुझपे, भवसागर हटवाना जी ! ।
तुकड्यादास भरोसा तेरा, बस अब साथ बिठाना जी ।।४।।