रामकथा रस चाख । अंधे भाई !

( तर्ज : ऐसे दिवानेको देखा भैया... )
रामकथा रस चाख । अंधे भाई ! रामकथा रस चाख ।।टेक।।
राम- कथा रस संतही चाखे, नहीं तो सब नापाक ।
राम -मंत्र निसदिनमें सुमरो, टूटे सब भव -धाक ।।१।।
पाप- पूनकी गठड़ी किन्ही, लेकर उल्टी झाँक ।
करम - धरममें भूला बंदे ! अपनी किन्ही    राख ।।२।।
राम-कथा अनमोल कही है, सुमरो राम-सुनाम ।
राम - नामसे तरा अजामिल, गाँठलियो निजधाम ।।३।।
राम - नामसे वाल्या कोली, तरा ऋषी   ले  नाम ।
तुकड्यादास कहे झुठेको,   मत   देना    आराम ।।४।।