कहूँ सो समझ धर यार । साधो भाई !
(तर्ज : ऐसे दिवानेको देखा भैया... )
कहूँ सो समझ धर यार । साधो भाई ! कहूँ सो समझ धर यार ! ।।टेक।।
नहीं हमारा ठान-ठिकाना, नहीं कहाँ घरदार ।
नहीं आये और नहीं जावेंगे, स्थीर सदा बस्तार ।।१।।
जितना दृश्य दृश्यसे न्यारा, न्यारेकेभी पार।
शब्दरूप जहाँ बोल न पावे, वहीं निर्बास हमार ।।२।।
नहीं दरबार रंग-रुपोंका, अंदर बाहर सार ।
जहाँपर देखा वहाँपर भेखा, देखपना नहीं छार ।।३।।
नहीं जन्मे हम मात-पितासे, नहीं आये कभु पार l
काम-अकाम हमें कछू नाहीं, अकरत रहन उबार ।।४।।
अस्ति-भाति-प्रिय रूप निसंगी, करार हकसो बार।
जीना-मरना हमको नाहीं, जीन - मरनसे न्यार ।।५।।
नही अवस्था हमको बांधे, पाँच अवस्था -पार ।
स्वर्ग - मृत्यु पातालसे न्यारा, चौथा देश हमार ।।६।।
कहाँतक बोल पुराऊँ भाई ! गूँगा है कथवार।
तुकड्यादास कहे पहचानो, जब पाओगे सार ।।७।।