राम -भजन कब होय ?
(तर्ज:घर आये लछमन - राम...)
राम -भजन कब होय ? उमर सारी बीत रही ।।टेक।।
लख चौरासी योनि भोगी, भोगे पतन - दुवार ।
भोग चुकें नहीं अबभी मेरा, कैसा होऊँ पार ? ।।१।।
बालापनतो खेलत भोगा, नहीं जाना कर्तार ।
खाना सोना सब दिन भोगा, झूठ किया व्यवहार ।।२।।
तारुणपनमों तिरिया सँगमें, भोगा जग -परिवार ।
रातदिना विषयनकों भोगा, भोगा हूँ परनार ।।३।।
पैसा-पैसा लाकर पाला, अपना सब घरबार ।
झूठे झाठे बोल बोलकर, नहीं माना इतबार ।।४।।
बुडढेपनमें इंद्री लूँझे, लूँझे तन - तरवार ।
आया वैसा गया नरकमों, भूला वह कर्तार ।।५।।
कहता तुकड्या रामभजन बिन, झूठा यह संसार ।
कोई नहीं है किसिका वाली, आपही भोगे सार ।।६।।