कहाँतक ढूँढ फिरूँ ? प्यारेको मेरे

(तर्ज : ऐसे दिवानेकों देखा भैया...)
कहाँतक ढूँढ फिरूँ ? प्यारेको मेरे, कहाँतक ढूँढ फिरूँ ? ।।टेक।।
जंगल ढूँढा दरिया ढूँढा, ढूँढा सब जिगरू ।
तीरथ - धाम  फिरा     फिर    ढ़ूँढा,    ढूँढा   बेदसरु ।।१।।
देवल ढूँढा काबा ढूँढा, सब जग ढूँढा फिरूँ ।
कहींपर खोज नहीं पा सकता, उस बिन कैसे तरूँ ? ।।२।।
ऊपर ढ़ूँढा नीचे ढ़ूँंढा, ढ़ूँढा नार-नरू ।
शास्त्र - पुराण - कुराणा ढूँढा,    अंध    बनी   नजरु ।।३।।
दृश्य जगतको ढूँढ फिरा अब, कौन उपाय करूँ ?।
तुकड्यादास आस धर उसकी,  नामही    लेत   मरूँ ।।४।।