सोचकर कदम चलाना यार !
(तर्ज : जगपती ईश्वर ! तू करतार.... )
सोचकर कदम चलाना यार !
आगे भवपूर नदिया भारी, डूब मरेगा पार ।।टेक ।।
उस नदियामें बडो -बडोंकी, आयी मौत उबार ।
कूदे सो निकले नहीं बाहर, चौरासी हैं मार ।।१।।
पीछे गया तो पर्वत भारी, ऊँचा है गरदार ।
उस पर्वतमें चमके मोती, हीरे पाचरेदार ।।२।।
उस मोतीको जो कोई भूले, वे होते बीमार ।
इधर-उधर का मारग छुटे, छटक रहे तलवार ।।३।।
बाजू चलेगा ज्वाल बडा है, बातोंका भडमार ।
उन ज्वालोमे जो कोई जावे, सो होता है गँवार ।।४।।
एक तरफसे व्याघ्र खडा है, देखत खावे पार ।
साधु-ऋषी अरू जटा बढावे, उसका चाबे सार ।।५।।
इधर उधर कुछभी नहीं जाना, स्थीर रहो घनमार ।
पाप-पुनोंको मारो जूते, फेर मिले कर्तार ।।६।।
आप नहीं अपनेको जानो, कर इतना अकसार ।
तुकड्यादास कहे मन मारो, टूटे काल गँवार ।।७।।