अगम नहीं पावे वह गुरुबिन यार !

(राग पहाडी )
अगम नहीं पावे वह गुरुबिन यार ! ।।टेक।।
बाहरकी बातें सब छूटी, नहीं मनका बेपार ।
मनहीको सतसंग दिलाकर, कर दीन्हो भवपार ।।१।।
भूवर-धारा सत्रहवीकी, पीयो गटके मार ।
नशा चढायी द्वीदलमाँही, नहीं उतरे कभु यार ! ।।२।।
आसन मारे सिध्दीबनमें, डोले काम-कुम्हार ।
त्रिकूट - माठ झनानी लागे, शंख मृदंग   अपार ।।३।।
बिजली सम चमके वह नैना, ज्योत चढ़े झकदार ।
तुकड्यादास आस धर धारे, गुरु मेरो   रखवार ।।४।।