साधूकी प्रेम -धारा, सो बूझे नहीं
(तर्ज : निरंजन पदको साधु कोई पाता है ... )
साधूकी प्रेम -धारा, सो बूझे नहीं ।।टेक।।
रातदिना कबहूँ नहीं बूझे, नहीं बूझे तन सारा ।
मरे - जियेपरभी नहीं बूझे, ऐसा पंथ नियारा ।।१।।
नहीं बूझे बालापनमाँही, न बूझे साथ गँवारा ।
तिरिया संगमेभी नहीं बूझे, उसका वही उजारा ।।२।।
पाप-पुण्यसे नहीं बूझे वह, नहीं बूझे परकारा ।
अकर्म-कर्मोसे नहीं बूझे, अंतर मित वह प्यारा ।।३।।
कहता तुकड्या नही बूझे जिसका नितसिद्ध उजारा ।
बूझे एक दुई करनेसे, भोगे पतन - दुबारा ।।४।।