रमैयाकी नारीसे भूले अपार

(तर्ज : निरंजन पदको साधु कोई पाता है...)
रमैयाकी नारीसे भूले अपार ।।टेक।।
ब्रह्मा भूला, शंकर भूला, भूला जग - परिवार ।
तीन लोकभी सारे भूले,    सुखसे   पावे   हार ।।१।।
भूले साधू और बिराधू, गाँड लँगोट पधार ।
छुपे-खुले सबही भूल पाये, ऐसी दुलहन यार ! ।।२।।
जपी-तपी-संन्यासी भूले, नहीं राखा इतबार ।
मंत्री - जंत्री - तंत्री भूले, जमके   खाये    मार ।।३।।
जा की भूले तन-दरगेको, वही बैठे हुशियार ।
मारे गये मरनेके अव्वल, वहीं   छूटे    सरदार ।।४।।
मैं - तू जिसने एक किया है, उसने बाँधा सार ।
तुकड्यादास कहे पाये वह, जीवनकी निजधार ।।५।।