खबर नहीं आवत राम बिहार
(तर्ज : निरंजन पदको साधु कोई पाता है ... )
खबर नहीं आवत राम बिहार ।।टेक।।
ऊपर देखा नीचे देखा, देखा तीनही ताल ।
तीनही में नजरी नहीं आवे, मेरा परम दयाल ।।१।।
जाग्रत- स्वप्न- सुषूपत देखा, देखा तुरिया पार ।
पाँचोभी परदेमें देखा, नहीं दिखता दिलदार ।।२।।
पंच तरहका बगीचा देखा, देखा पवन सुमार ।
सप्त समुंदर - अन्दर देखा, नहीं मेरा सरदार ।।३।।
कहता तुकड्यादास, पासका नहीं देखा कभु यार ।
लडका भूला दुनिया देखी, गोदहीमें वह प्यार ।।४।।