तुम्हारी गति साहब ! कौन दिखाय ?
(तर्ज : निरंजन पदको साधु कोई पाता है... )
तुम्हारी गति साहब ! कौन दिखाय ? ।।टेक।।
रीघ नहीं बतलावनको, ऐसा तेरा परिवार ।
कहाँपर उँगली धरावे ? उसमें तूही भरा दिलदार ! ।।१।।
ब्रह्मा भूला विष्णू भूला, शंकर भी भूलवार ।
ये तीनों जगके फंदेमे, इनसे तू हे न्यार ।।२।।
साधू - सन्त - महन्त बखाने, वे भये ठण्डेगार ।
आपही आप मगम में रहते, नहीं कुछ बोले सार ।।३।।
कहता तुकड्यादास हमारी, दया लिजो मिलवाय ।
आप समान रुप सम कीन्हो, जबही साहब पाय ।।४।।