कोई बिरला निरखनवारा,

(तर्ज : तुम दया करो रघुनाथजी ...)
कोई बिरला निरखनवारा, वह साहबकी चतुराई ।।टेक।।
बाती बिन जागे ज्योती ।
कभु रैन दिना नहीं सोती ।
झिलमिल नितमें चमकाती, यह गुरुबिन बात न पाई ।।१।।
एक जिंदा महल बनाया ।
महलोंपर जीन चढाया ।
जिनेमें मीन गढाया, यह उलटी चाल    चलाई ।।२।।
उस मीनके अंदर झाँसा ।
बीच पंछी है छोटासा ।
पंखो बिन कूदे खासा, देखे  तो    नजरी   नाई ।।३।।
वह पंछी है निरबाना ।
बिन पाँव चले मस्ताना ।
उलटा जावे अस्माना, अविगतका चार   चराई ।।४।।
पंछी बिन ज्योती नाहीं ।
जहाँ पंछी वहाँ झलकाई ।
तुकड्या गुरुगम बतलाई, जगनेसे ज्योती पाई ।।५।।