साधो ! सुन निर्गुण की बाता
(तर्ज : नारायण जिनके हिरदेमें, सो कछू कर्म...)
साधो ! सुन निर्गुण की बाता । बातोंका मूल
पाता है रे ! ।।टेक।।
प्रथम निरामय अचल स्वभाविक । निज ओंकार उठाता है रे ! ।।१।।
स्फुरणा से निल बिंद झकाके । शुद्ध स्वरुप तहाँ भाता है रे ! ।।२।।
सूक्ष्म बीज ओंकार बिराजे । मेघ - गर्ज सम नाता है रे ! ।।३।।
तुकड्यादास कहे सुननेसे । तीन लोक भरमाता है रे ! ।।४।।