तनमें भाई ! तनमें भाई ! दिलका पट
(तर्ज : बलहारी मैं बलहारी मैं . . . )
तनमें भाई ! तनमें भाई ! दिलका पट खोल मिले साँई ।।टेक।।
कहाँपर जाता काशी मथुरा ? कचरे बीच हिरा है गहरा ।
घुमता क्या बन बनमों बहिरा ! साथ बसे नजरी नाई ।।१।।
झिलमिल झिलमिल जागे ज्योती । एकसे एक गिरे मधु मोती।
हँसती है न कभीभी रोती । क्या गाऊँ कितना गाई ।।२।।
सहज-सहजमें चमके नैना । नैनोंके भीतरमें ऐना ।
ऐनेमें तेरा है रहना । भवजल तर नौका पाई ।। ३।।
एकसे एक उजारा पावे । चंद्र-सूरज बिन झलक बतावे ।
तुकड्यादास गुरु-गुण गावे । ताके अधारबिना नाही ।।४।।