खूब वृक्ष बना, अजमाना है
(तर्ज - बलहारी मैं बलहारी मैं ... )
खूब वृक्ष बना, अजमाना है । उसके फलको अब खाना है ।।टेक।।
तारुणपनमों प्रगटे वल्ली । उस वल्लीको निकले कल्ली ।
कल्लीको फिर आवे फल्ली । फल्ली पेट समाना है ।।१।।
चित्तरूपी भँवरा वह लूटे । आशा उसे सुवासा छूटे ।
विवेक उसपर ल्ली फूटे । फल अनुभवसे लाना है ।।२।।
अस्ति-भाति-प्रिय फल वह पावे । सत् चित् सुख उसको कहलावे ।
तुकड्यादास गुरु-गुण गावे । ताकी किरपा पाना है ।।३।।