काहेको ढूँढत परघर भाई ?

(तर्ज : इस तनधनकी कौन. . . )
काहेको ढूँढत परघर भाई ? घटहीमें ख्याल लगा पलमाँही ।।टेक।।
कई बिध बाचत पोथी -पुराणा ! अबतक मनको न धीर दिलाई ।।१।।
काहेको देखत दूसर आँखी ? तेरी आँखमें ब्रह्म भरो समाई ।।२।।
कित दिन पूजत देवल-मूरत ? अपनी सुरतको नहीं अजमाई ।।३।।
कहे तुकड्या छोड परके प्रकाशा । तेरो प्रकाश भरो सबमाँही ।।४।।