जलबिन मछली रहन नहीं पावे ।

(तर्ज : इस तनधनकी कौन... )
जलबिन मछली रहन नहीं पावे । तैसे प्रभुबिन जिया घबरावे ।।टेक।।
बनबन ढूँढत उमर गुजारी । नहीं चैन दिलको पलभर पावे ।।१।।
साधत साधन कई दिन बीते । नहीं प्रभुको प्रेम दिलमें समावे ।।२।।
जिधर उधर ये इंद्रिय भागे । जबलग राम -दरस नहीं पावे ।।३।।
घडी-घडी रोकत मद अरु कामा । नित उत विषयनमें ललचावे ।।४।।
कहे तुकड्यादास गुरु-किरपा बिन । किन्ही कमाई बिरथ गमावे ।।५।।