जाये जले मोरी सब जिंदगानी
(कतर्ज : इस तनधनकी कौन...)
जाये जले मोरी सब जिंदगानी । एक न छोड़ूँ गुरुपद मानी ।।टेक।।
टूट पडे तनका सुख सारा । कबहू न छोड़ूँ राम पियारा ।।१।।
चाहे मरे तनके गणगोता । एक रहे सतसंग सबुता ।।२।।
छूट पडे धनसे मन सारा । बाँध सकूँ मूख प्रेम अपारा ।।३।।
नहीं हमको मित्रनकी आसा । एक धरूँ नित वृत्ति उदासा ।।४।।
ना हमको किसके घर जाना । एक रहे नित अंतरध्याना ।।५।।
तुकड्यादास त्यजूँ पद चंगा । कबहू न छोड़ूँ संतन संगा ।।६।।
(----वृन्दावन)