हमरी पुकार अबतक, रघुबर न सुने होते ?

(तर्ज : अरे ! कोण-कोण येतो त्या स्वर्ग-सुखाला... )

हमरी पुकार अबतक, रघुबर न सुने होते ?
जीते न हम जगत्‌ में, मुरदा ही बने होते ।।टेक ॥
कुछ काम-धाम खेती, उद्योग नहीं हमको ।
गाना न ताल-सुर है, भक्ती भि नहीं हमको।।
हम एक है अभागे, इससे ही छने होते !  ।।1 ।।
कोइ अवगुणि भि होते, दिखनेको खूब -सूरत।
पीते शराब - गांजा, जमते है     लोग  तुरत ॥
हम वो भि तो नही है,उसमें जो गिने होते!।।2 ।।
पंडीत गरचे   रहते, सब शास्त्र कहा करते।
पोथी   सुना-सुनाकर, चेलों में रहा   करते।।
हम हैं उदास दिलसे,नहिं तो भि चिन्हें होते ! ।।3 ।।
बस एक ही है हम में, सबको ही हाथ जोडो।
सुख दुःख जो भि आवे, सहते हि दिन उजाडो।।
जो कुछ भि सरल बानी, अति प्रेम -भरे गाते।।4 ॥
अपनी अवाज सुनते, बाहर भि वही कहते।
तुकड्या कहे प्रभूसे, बिलगे ही सदा रहते।।
कर्ता प्रभू निभाना, फिर कोई ना निभाते ! ॥5 ॥