होरी मैं अपने घट खेलूँ । होरी मैं
(तर्ज : जमुना तट राम खेले होरी..... )
होरी मैं अपने घट खेलूँ । होरी मैं ।।टेक।।
ब्रह्मी ब्रम्ह बीच अन्तर जो ।
खेल करूँ वह भीत-उपर जो ।
दूहपना यह किनसे जालूँ ? ।।१।।
काम-क्रोध वस्तू जलवाऊँ ।
जलवाके तन भस्म रमाऊँ ।
भाव - अभावपणा हर डालूँ ।।२।।
सुन्न नगर बिच खेलूँ होरी।
चेत-सचेतन देखूँ उजारी ।
मेरापन मोहीमें झेलूँ ।।३।।
स्वाँस-उसाँसी फूँक लगाऊँ ।
निरंजन - मंतर कहवाऊँ।
तुकड्या दृष्टादृष्ट जलालूँ ।।४।।