जोगी कोई रमता देखा

(तर्ज : कायाका पिंजरा डोले... )
जोगी कोई रमता देखा, रेवाके किनारेपर ।।टेक।।
नहीं गाँड लँगोटी थी । नहीं पास धतूरा था ।
अपनीही मस्तीमें देखा, रेवाके किनारेपर ।।१।।
स्वच्छंदके  फुवारोंमे । आबादकी  बहारोमें ।
अपनेही नशेमें देखा, रेवाके    किनारेपर ।।२।।
नहीं पास बिछाना था । नहीं सिर सिराना था ।
नंगा - निसंगसा देखा, रेवाके  किनारेपर ।।३।।
संसार को जला करके । आसक्तिको भुला करके ।
दुनियासे  मरासा देखा, रेवाके किनारेपर ।।४।।
आनंदकी लहरोंमे । तुकड्या खुशी मनाता था ।
सम प्रेम भरासा देखा, रेवाके किनारेपर ।।५।।
                             (--- गोकुल)