अधिकार तेरो स्वामी ! घट - घटके अन्तर्यामी
(तर्ज: पावन पतीतके तुम...)
अधिकार तेरो स्वामी ! घट - घटके अन्तर्यामी ।
तर गये बहुत नामी, क्या गाऊँ महिमा तेरी ? ।।टेक।।
बैकुण्ठ ग्राम तेरा, चरणोंका दे सहारा ।
तुझबिन नहीं है थारा, आ हृदयमें मुरारी ! ।।१।।
बरखेड ग्राम-अन्दर, पावन तुम्हारा मन्दर ।
रुप देखनेको सुन्दर, दर्शनसे पाप हारी ।।२।।
आओ कसारबाबा ! हिरदे करो जी! शोभा ।
पापी उद्धार लो बा ! जन्मोंके दुःख टारी ।।३।।
तुकड्या तो है तुम्हारा, उसे कालने जी ! घेरा ।
ब्रीद राखलो घनेरा, भक्तनके साह्यकारी ! ।।४।।