रुप है तेरा, सुन्दर चक्रधारी !

(तर्ज : अरे हरि प्यालो, प्याला नामाचा.... )
रुप है तेरा, सुन्दर चक्रधारी ! ।
पीताम्बर झलके जरतारी ।।टेक।।
हृदय में मेरे, आओ पुतनारी ! ।
जिसने कंस को पकड़ मारी ।।
कान कुण्डल की, छबि है जी ! न्यारी ।
अधर बन्सी की टेर प्यारी ।। रुप है०।।१।।
संग में राधा, रहे नित्य जिसके ।
साथमें ग्वाल - बाल, राखे ।।
मुकुट सिर - ऊपर, दाता भक्तनके !
अवतरे पुत्र देवकी के ।।
गिरीवरधारी ! रक्षक पाण्डवके ।
महिमा अपार    है   तेरी । रुप है०।।२।।
बाल यह तुकड्या भाट कहे स्वामी !
तुम सभी घट - घट अंतर्यामी ।।
गुण क्या तेरे, वानूँ मैं पापी ! ।
तराते हो जी ! भक्त आपी ।।
बेदभी चारों, कहे नेति - नेति ।
रखो चरणन में सुखकारी ।।रुप है०।।३।।