कब आओगे हिरदे माँही ?
(तर्ज : प्यारे अपनी गठडी खोल... )
कब आओगे हिरदे माँही ? गुरुजी ! तुम्हरी मोहे आस ।।टेक।।
जा बैठे भुवनामाँही । दासनकी दयाही नाही ।
लगी गुणवर्णन की प्यास ।। गुरुजी०।।१।।
फिरता हूँ मैं बन-बन में । न पता है तुम किस जन में ।
मेरे हृदय करोजी ! बास।। गुरुजी०।।२।।
कहाँ घुमनेको मैं जाऊँ ? तेरो ठिकान कहाँसे पाऊँ ।
काम-क्रोध करो जी! नास।।गुरुजी०।।३।।
कहे तुकड्यादास फकीरा । नहि लागे कहाँ जी ! थारा ।
करूँ जान का सत्यानास ।। गुरुजी०।।४।।