है क्षणभंगुर यह जीवन सब दुःखनका
(तर्ज : बेउजर मस्त क्यों...)
है क्षणभंगुर यह जीवन सब दुःखनका ।
संसार असारहि अवडम्बर है मायाका ।।टेक।।
भाईबंद प्यारे ! सब साथी पैसों के ।
डाल के गले फाँसा देते हैं झोंके ।।
कर विचार रे ! तू सत्य न तेरा कोई ।
आयगा काल का झण्डा फिर पछताई ।।
कर सोच, समझ धर, राम-नाम तू गाई ।
उस नाम बिना तेरे साथ न आवे कोई ।।
माया के फेर में क्यों खाता है झोंका ?
संसार असार०।।१।।
कर ख्याल जरा रे! अब तो उलट कर नैना ।
जा शरण गुरुको, आपरुप पहिचाना ।।
हो करके आतमग्यानी हुआ जो लीना ।
वह रामस्मरण में सदा बजावे बीना ।।
एकनिष्ठ धरके भाव जो सुमरण कीन्हा ।
तो सत्य जानले, भव-सागर तर लीन्हां ।।
क्यों लातें खाता ? गुरु-चरण धर नीका !
संसार असार०।।२।।
इसलिये गया मैं आडकुजी - चरणों में ।
गुरु बोले मुझसे क्यों जाता पहाडों में ।।
कर सत्यासत्यका ग्यान, मान ले कहना ।।
वह सुनके तुकड्या दास हुआ लौलीना ।
तुम यही करो कहता है तुकड्या दीना ।
स्वानंद खोज लो, सफल बनालो जीना ।।
सब तोड पाश यह काम-क्रोध के जगका ।
संसार असार०।।३।।