जी ! कहो, पेशीमें कसूर हो तो भरदूँ
(तर्ज-बेउजर मस्त क्यों... )
जी ! कहो, पेशीमें कसूर हो तो भरदूँ ।
ये प्राण जीव तन सभी समर्पण करदूँ ।।टेक।।
नही रहा पासमें कुछ, तो आगे धर दूँ ।
क्या तेराही कुर्बान तूहीपर करदूँ? ।।
हर जगह तूही तू भरा, भाव यह हर दूँ ? ।
क्या तुझे तोडकर तेरे सरपर धर दूँ ? ।।१।।
अब रहा बाकी एक भाव वही आखर दूँ ।
क्या सेवा सेवकभाव एकही करदूँ ? ।।
नहीं समझ पडे कुछ कसूर मेरा गर दूँ ।
रख छाज दास तुकड्याकी चरणपर सर दूँ ।।२।।
(--- त्र्यंबकेश्वर)