इल्मका इल्मी है जिसके घरमे
(छंद)
इल्मका इल्मी है जिसके घरमे, तो इल्मका क्या चले दिदार ?
इल्म वह पाय चुके सब हार जी ! ।।टेक।।
बडा इल्म एक प्रभू-भजन है, कई शत्रू होते हैं ठार।
बने सब काम क्रोध नादार जी ! ।।१।।
इसी इल्मका लगा तार जब, कइ कट जाते है हथियार ।
लगे नैया भवजलके पार जी ! ।।२।।
न इल्म कोई असर करे, फिर लगी रहे अंगार ।
उडे ग्यानके तेज - फुँवार जी ! ।।३।।
इसी अग्निसे उडी ठिनगियाँ, दया क्षमा-शांतीकी धार ।
चमकती इल्म बीच तरवार जी ! ।।४।।
न पंच विषयोंको थाक पावे, न इंद्रियों का चले उजार ।
उडे गहरे नित प्रेम - फुँवार जी ! ।।५।।
फुँवारमें जब चमकती बिजली, टूटे अग्य मेघ-अंधियार ।
प्रगट तब होत इल्मिया यार जी! ।।६।।
न ख्याल किसपे लगा रहेगा, अपने धुनकी लगी बहार ।
न किससे बहुर चुकेगा प्यार जी ! ।।७।।
न मंत्र-मंत्रीकी मोहबती है, आपही अपना करे सुधार ।
अलग दुनियाके रहता यार जी ! ।।८।।
वह दास तुकड्या इसी इल्मको, कइ जन्मोंसे ढूँढे यार ! ।
लगा सद्गुरु-चरणका थार जी ।।९।।