जाग रे कुमार बाल ! घोर काल आया ।

(तर्ज : जागिये रघुनाथ कुँवर... )
जाग रे कुमार बाल ! घोर काल आया ।
कहाँतक अब सोत पडे, वक्त क्यों गमाया ?।।टेक।।
घडि घड़ि पल रैन जात, मेघ - गर्जना सुहात ।
माया - अँधियार बीच, प्रेम क्यों लगाया? ।।१।।
थोरी अब बाकि रही, दिनकी यह भोर भई ।
अन्तकाल आन पड़े, जायगा  धकाया ।।२।।
अँधियारा दूर डार, पलट देखले उजार ।
नहिं तो फिर भूल गया, काल आय खाया ।।३।।
करनी कर चेतनकी, छोड़ दे अचेतनकी ।
खबर मान तुकड्याकी, याद क्यों भुलाया ? ।।४ ।।