जाग रे अजान मूढ ! छोड़ दे अँधेरा
(तर्ज : जागिये रघुनाथ कुँवर. ... )
जाग रे अजान मूढ ! छोड़ दे अँधेरा ।
पलक खोल राम बोल, देखले उजारा ।।टेक।।
बन बन क्यों बिचर पड़ा, विषयनमें काहे जड़ा ?
दिन दिन पल जात उड़ा, हंस यह पियारा ।।१।।
कर सिंगार कारबार, गोत मीत सूत नार ।
आखिरमें खाय हार, जन्म जाय मारा ।।२।।
ऊठ संत-संग साध, छोड़ जगत-फंद वाद ।
महिमा उनकी अगाध, पाय मोक्ष-धारा ।।३।।
सोत सोत रैन गई, बिजलीसम चमक भई ।
तुकड्याने कीन्ह सही, राम है हमारा ।।४।।