जाग जाग जाग मूढ़ ! छोड़ दे अँधेरा

(तर्ज : जागिये रघुनाथ कुँवर. . . )
जाग जाग जाग मूढ़ ! छोड़ दे अँधेरा ।
मलिन बुद्धि - नींद त्यजो, शुध्द ले उजारा ।।टेक।।
नर-तन अनमोल पाय, विषयसंग क्यों गमाय ?
अंतःकाल बिपत पड़ी, कहिं न पिले थारा ।।१।।
जागा प्रल्हाद बाल, नारायण जपत माल ।
जन्म - मरण टूट पड़े,    नामसे      उबारा ।।२।।
जगनेसे धृव तरा, आसन धृव धृव करा ।
त्याग दिन्हो राज - काज, रहत अलख न्यारा ।।३।।
अलख ब्रह्म-ज्योत जगी, जागे जो उनहूँ लगी ।
तुकड्या पद पद हि पात, नींदको    बिसारा ।।४।।