जिंदगी जो मेरी थी सो, मैहिको दिलायदो

(तर्ज : जिंदगी सुधार-बंदे ....)
जिंदगी जो मेरी थी सो, मैहिको दिलायदो ।।टेक।।
जोड़ जोड़ गठड़ा लाया, मानुजकी देह पाया ।
जिसीके लिये मैं आया, वहीको पिलायदो ।।१।।
दीन दास दरपे रोता, न्याय क्यों न मेरा होता ?।
जिसके लिये खाऊ गोता, उसीको मिलायदो ।।२।।
शक मेरा डाकूपे होता, इन्होंने दिलाया गोता ।
करके चला हूँ मैं भोता, इन्होंको जलायदो ।।३।।
पाँच छैय मिलके आये, घरमें मेरे डाका लाये ।
मुझे धूंधमें मिलवाये,   इन्हींको   भूलायदो ।।४।।
नार एक ठगनी आई, मुझे नींद दी चढवाई ।
चोरने धनकों उडवाई, तुकड्या जिलायदो ।।५।।