आसरा धरा हूँ तिसका

(तर्ज : जिंदगी सुधार-बंदे ...)
आसरा धरा हूँ तिसका, जिमें विश्व आता है ।।टेक।।
मूल गणेशा को दीन्‍हा, स्वाधिष्टान ब्रह्मा लीन्हा ।
मणीपूर विष्णु ठाना, जिसहिमें समाता है।।१।।
रुद्र अनाहतमें बैठा, बिशुध्दिमें जानहि लेटा ।
द्विदलपे मायाका खेटा, बैठके रमाता है ।।२।।
कोट भानु बिजली चमके, वही खास साँई हमके ।
कहे दास तुकड्या रमके, फकीरी कमाता है।।३।।