जाता है, कहाँ रे मन?

(तर्ज : आजा रे परदेशी...)

जाता है, कहाँ रे मन?
मैं तो साधन से घोर कठोर ! !
मुझमें शांती के नाही रे क्षण ! ॥टेक।।
सगुण प्रभू का ध्यान धरूँ मैं । 
नाम जपूँ गुण-गान करूँ मैं ।।
नाच -नाच भरूँ आँखो नयन ।। कहाँ रे मन0 ।।1।।
रंगे - बिरंगे  फूल बहारऊँ ।
मल-मल सुंदर वस्त्र  चढाऊँ।।
धूप-दीप की   स्वाँस    सधन ।। कहाँ रे मन0॥2।।
मन -मानस   मन्दीर    बनाया।
संकल्पित आसन मन भाया।।
गुरु-मंत्र  का   किया   मनन ।।  कहाँ रे मन0।। 3।।
तूतो बैठे स्थीर हृदय में।
तबही सुख होवे नस-नसमें ।।
तुकड्या कहे, कर बात जतन ।। कहाँ रे मन0।।4।।