सुमरण बिन बिरथा काल काल

(तर्ज : जिंदगी सुधार-बंदे ...)
सुमरण बिन बिरथा काल काल ।
नर ! क्यों भटका श्रम-जाल जाल ।।टेक।।
हाथी घोड़ा माल खजाना, पलभर संपत डाल डाल ।।१।।
सुत मित नारी होत पियारी, अंतकाल फिर हाल हाल ।।२।। 
नाति अनाती साथ न आवे, स्वारथकी सब माल माल ।।३।।
समझ सुजान ! मान कहि मेरी, क्यों खोता तन नाल नाल ।।४।। 
तुकड्यादास कहे सुमरणसे, टूटे यह भव-जाल जाल ।।५।।