एक संत जगत सुखदायी

(तर्ज : तू तो रामनाम भज तोता .... )
एक संत जगत सुखदायी । जिया अमर जिन्होंने कमाई ।।टेक।।
कोई लाया न पाया जगतसे ।
कभी भूले नहीं निज मतसे ।
जैसे आये वहकी है गतसे ।
किया भक्त उध्दारा यह सतसे । दूइ दिलकी हमारे मिटाई ।।१।।
पूरा गैबी गुरुनाथ प्यारा ।
तोडा पलमें यह भवका पसारा ।
लिया तापी किनारेमें थारा ।
जो कि साधक बने अवतारा । बात मुखसे जगत्‌से कहाई ।।२।।
गुरु केजाजी भला संग पाया ।
जिसने तनमें विठोबा समाया ।
संग होके निःसंग की माया ।
गंगाथड नैया पार लगाया। दास सेवा- ममोरथ पाई ।।३।।
संत बेंडोजी सुखसार प्यारे ।
जिसने कई बोधसे लोक तारे ।
मस्त मौला सुरतके उजारे ।
जहाँ नहिं काल जीके भरारे । भक्त भक्तीसे तनको समाई ।।४।।
माता जय जानकू अवतारी ।
जिसने अलमस्त उमर गुजारी ।
रहन करके बिदेही सुधारी ।
भई भवपार नैयाको तारी । माई निर्धारसे ज्योत पाई ।।५।।
मायबाई का पूरा पसारा ।
एक पलमें वह आडकोजी तारा ।
जिसने जगबीच नाम उध्दारा ।
खुला ब्रह्ममगर-दरबारा । मुक्त होकर जगतको तराई ।।६।।
जय जगन्नाथजी मस्त प्यारे ।
ब्रम्हयोगीसे योग निहारे ।
हुए मायासे दूर तनको तारे ।
दास तुकड्या चरणसे छुआरे । आस दे मोहे भक्ति -सुधाही ।।७।।