वही कादरका कुदरती प्यारा

(तर्ज : तू तो रामनाम भज तोता ....)
वही कादरका कुदरती प्यारा । जो जीतेजी तनको बिसारा ।।टेक।।
कभी नजरोमें दूई न आई ।
चाहे काबा हो बुतखान भाई ।
पाक खालिकसे नैना भराई ।
हार-जीत को पूरी हराई । सबमें होके रहे जो नियारा ।।१।।
दादामिय्या की गति कुछ न्यारी ।
मस्त नंगा फिरे ब्रहमाचारी ।
हो उजारी या बरसे अँधारी ।
लाश अपनी गुपत कर डारी । दिया आशकको पूरा अधारा ।।२।।
संत सोमेश्वर गुरुराज साँई ।
जिसकी महिमा न हमसे कहाई ।
जिसने जंगलसे प्रीति लगाई ।
जिधर देखो उधर बादशाही । संत-संगतसे पूरा निहारा ।।३।।
फकिर बाबा की पूरी फकीरी ।
बालरूपहिमें  उमर गुजारी ।
भक्त पूरे जो निजको उजारी ।
आस तनकी मिटाई जी सारी । किया ब्रह्मनगरको थारा ।।४।।
एकनाथजी की सुनलो चटाई ।
सिध्द पुरे दुआई मिटाई ।
लोग दुश्मन न कोई सगाई ।
भक्तजन निज लौमें लगाई । जोकि जाने वही जाँनिहारा ।।५।।
मस्त सीताराम अवलीया पूरा ।
काम क्रोधोंका किया जिसने चूरा ।
लहरी बहरी नजर, नैन मोरा ।
सिध्द बचनोंका जिसको उजारा । जोकि तनमें मरा मरनहारा ।।६।।
काशिनाथजी की सुनलो कहाई ।
बैल - खेलहिमें उमरी गमाई ।
आत्मज्योती पुरी भर पाई ।
दास तुकड्या भजत गुण गाई । नाम लेके चला है गुजारा ।।७।।